Thursday 6 April 2023
Saturday 25 March 2023
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Wednesday 22 March 2023
Tuesday 7 March 2023
Shabul iman
. . . . . . . . . . . . . *शअबुल ईमान*
शअबुल ईमान
का सलीस हिंदी तर्जुमा
ईमान की शाखें
ईमान और उस की शाखों पर साठ अहादीसे करीमा
मुसन्निफ
इमाम हाफिज़ शैख़ इमामुद्दीन इब्ने कसीर अशअरी शाफ़ई दमिश्की
(702-774 हिजरी.1301-1373ईस्वी)
तहक़ीक़ व तर्जुमा (उर्दू)
अल्लामा मौलाना डाक्टर हामिद अलीमी
तर्जुमा उर्दू से हिंदी
मुहम्मद अब्दुर रहीम खान कादरी रज़वी
जमदा शाही बस्ती यू पी खतीब व इमाम जामा मस्जिद राजगढ़ ज़िला धार मध्य प्रदेश इंडिया 7860762579
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
तमाम तारीफ अल्लाह तआला के लिये जो तमाम जहानों का परवर दिगार है ऐसी पाकीज़ा व मुबारक तारीफ जो क़यामत तक के लिये हो. मैं गवाही देता हूँ कि अल्लाह के सिवा कोई मुस्तहिक़े इबादत नहीं वह अकेला है. उस का कोई शरीक नहीं. अव्वलीन व आखिरीन का माबूद है.और मैं गवाही देता हूँ कि सय्यिदिना मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उस के बंदे.उस के रसूल.उस के हबीब और खातिमुल अंबिया वल मुरसलीन हैं.अल्लाह ला इन पर इन के असहाब.अज़वाज और जुर्रियत तमाम पर रहमत भेजे
अम्मा बाद
अल्लाह तआला का कुरआने मजीद में इरशाद है
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ ادْخُلُواْ فِي السِّلْمِ كَآفَّةً
"ऐ ईमान वालो इस्लाम में पूरे दाखिल हो जाओ"
(सूरः बकरा आयत 208)
मुफस्सिरीन का इस लफ्ज़ "काफ्फह* के माना में इख्तिलाफ है.अक़वाल को जेल में जिक्र किया जाता है
(01) उस का माना यह है कि तुम सब के सब इस्लाम में दाखिल होजाओ
(02) उस का माना यह है कि तुम सब इस्लाम में अपने गैरों से बचते हुए दाखिल हो जाओ और किसी को इस्लाम में दाखिल होने से मना भी न करो.लिहाज़ा इस क़ौल पर लफ्ज़ " काफ्फह " लफ्ज़ इदखुलू* में जमीर का हाल होगा
(03) उस का माना यह है कि पूरे इस्लाम में दाखिल हो जाओ यानी :उस के तमाम अह्कामात को थाम लो.यही सही तरीन क़ौल है (तफ्सीरे इब्ने कसीर. जिल्द 01 सफा 566)
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का इरशाद है :- ईमान की सत्तर (70) से कुछ ज़ाईद शाखें हैं.सब से आअला "लाइला ह इल्लल्लाह" कहना सब से अदना रास्ते से तकलीफ दह चीज़ को हटाना और हया भी ईमान की एक शाख है (इमाम बुखारी व मुस्लिम ने इसे हज़रत अबू हुरैरा से रिवायत किया है)
इन शाखों की तादाद के बारे में अहादीस व आसार बहोत. सी मरवी हैं.हम उन तमाम का ज़िक्र करेंगे और उन में हर एक की सिहत व जुअफ़ के साथ उस के रवायत करने वाले के बारे में भी बताएंगे.अल्लाह तआला की तरफ से ही तौफीक का मिलना है और उसी पर भरोसा किया जाता है.नेकी की ताकत और बदी से बचने की कुव्वत भी अल्लाह तआला की तरफ से ही है.जो गालिब और हिकमत वाला है
हदीस की तशरीह
हम कहते हैं कि मज़कूरह हदीस तीन शाखों पर मुश्तमिल है.
पहली:- यह गवाही देना कि अल्लाह तआला के सिवा कोई मुस्तहिक़े इबादत नहीं -
दूसरी:- रास्ता से तकलीफ दह चीज़ हटाना
तीसरी :- हया
बक़िया शाखों का बयान
(4 से 8 तक का बयान)
चौथी:-नमाज़ पांचवीं:- ज़कात। छटवीं :- पांचों वक़्त की नमाज़ की अदायगी सातवीं:- रोज़ा।
आठवीं:- हज
चुनांचे हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रदियल्लाहु अन्हा से रिवायत है फरमाया
"कबीला अब्दुल कैस का वफद रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में हाज़िर हुआ.उन्हों ने अर्ज़ की : " ऐ अल्लाह के रसूल ! हम रबीआ क़बीले वाले हैं. हमारे और आप के दरमियान कुफ्फारे मुजिर का क़बीला हाईल है.हम आप की खिदमत में सिर्फ हुरमत वाले महीने में आ सकते हैं लिहाजा हुजूर हमें उस चीज़ का हुक्म फरमा दें जिस पर हम अमल करें और अपने पीछे वालों को उस की दावत दें. "हुजूर अलैहिस्सलातो वस्सलाम ने फरमाया.में तुम्हें चार चीजों का हुकुम देता हूँ और चार चीजों से मना मना करता हूँ. तुम्हें ईमान का हुकुम देता हूँ-फिर हुजूर ने उन्हें ईमान की तशरीह बताई कि ईमान है कि गवाही देना है कि अल्लाह के सिवा कोई मुस्तहिक़े इबादत नहीं और मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) अल्लाह के रसूल हैं. नमाज़ क़ाईम करना. ज़कात देना और माले गनीमत से. पांचों नमाज़ की अदायगी करना" इमाम बुखारी व मुस्लिम ने इसे रिवायत किया है (सहीहुल बुखारी हदीस 53 सहीहुल मुस्लिम हदीस 17)
ईमान बिल्लाह के इलावह सात शाखों का बयान
(09 से 15 का बयान)
नौवें:- अल्लाह तआला के फरिश्तों पर ईमान लाना
दसवें:-अल्लाह तआला की किताबों पर ईमान लाना
ग्यारहवें:-अल्लाह तआला के तमाम रसूलों पर ईमान लाना
बारहवें:-मरने के बाद दोबारा उठाए जाने पर ईमान लाना
तेरहवें :- जन्नत
चौदहवें:- दोज़ख
पन्द्रहवें:- अच्छी व बुरी तकदीर पर ईमान लाना
हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रदियल्लाहु अन्हु से रिवायत है फरमाया
"एक शख्स रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में हाज़िर हुआ और अर्ज़ की " ऐ अल्लाह के रसूल ! ईमान क्या है ? फरमाया : तू ईमान लाए अल्लाह तआला पर.उस के फरिश्तों पर.उस की किताबों पर. उस के रसूलों पर.मरने के बाद दोबारा उठाए जाने पर. जन्नत व दोज़ख पर और अच्छी और बुरी तक़दीर पर. इमाम बुखारी व मुस्लिम ने इसे रिवायत किया है (सहीहुल बुखारी हदीस 50 सहीहुल मुस्लिम हदीस 08-10)
सोलहवीं और सत्तरहवीं शाख
सोलहवीं :-जिहाद
सत्तरहवीं :- वालिदैन से हुस्ने सुलूक
हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद रदियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि मैं ने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से पूछा :"कौन सा अमल बेहतर है " फरमाया :- "नमाज़ को उस के वक़्त में पढ़ना- मैं ने अर्ज़ की :फिर कौन सा? फरमाया " वालिदैन के साथ हुस्ने सुलूक" मैं ने अर्ज़ की"फिर कौन सा ? फरमाया "अल्लाह तआला की राह में जिहाद करना" हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद कहते हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुझ से यह चीजें बयान कीं.अगर मैं ज्यादा पूछता तो हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ज़्यादा इरशाद फरमाते."इमाम बुखारी व मुस्लिम ने इसे रिवायत किया है (सहीहुल बुखारी हदीस 527.सहीहुल मुस्लिम हदीस 85)
अट्ठारहवीं. उन्नीसवीं और बीसवीं शाख
अट्ठारहवीं :-अल्लाह तआला और उस का रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सब से ज़्यादा प्यारे हों -
उन्नीसवीं :- सिर्फ अल्लाह तआला के लिये मुहब्बत करना
बीसवीं:-इस्लाम में आने के बाद कुफ्र में लौटने को बुरा जानना-
"जिस में तीन खस्लतें हों वह ईमान की लज्जत पालेगा
(01) उस के नज़दीक अल्लाह व रसूल तमाम मासिवा से ज़्यादा प्यारे हों (02) और यह कि वह जिस शख्स से भी मुहब्बत करे सिर्फ अल्लाह तआला के लिये मुहब्बत करे (03) और यह कि उस के नज़दीक कुफ्र में लौटना ऐसा ना पसंदीदा हो जैसे आग में डाला जाना.ना पसंदीदा हो. इमाम बुखारी ने इसे रिवायत किया है (सहीहुल बुखारी हदीस 16-सहीहुल मुस्लिम हदीस 43)
इक्कीसवीं शाख: अंसार से मुहब्बत
हज़रत अनस रदियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया " ईमान की निशानी अंसार से मुहब्बत करना और निफाक़ की निशानी अंसार से बुग्ज़ रखना है. इमाम बुखारी व मुस्लिम ने इसे रिवायत किया है (सहीहुल बुखारी हदीस 17-सहीहुल मुस्लिम हदीस 74)
बाईसवीं शाख: हज़रत अली कर्रमल्लाहु
वजहहु से मुहब्बत
हज़रत ज़र बिन हबीश रदियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि हज़रत अली रदियल्लाहु अन्हु ने फरमाया
"उस जात की क़सम जिस ने दाने को चीरा और हर जान को पैदा किया ! बे शक नबिय्ये उम्मी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने (मुझ से) यह अहद फरमाया कि तुझ से मुहब्बत न करेगा मगर मोमिन और बुग्ज न रक्खेगा मगर मुनाफिक़ ! इमाम मुस्लिम ने इसे रिवायत किया है (सहीहुल मुस्लिम हदीस 78)
तेविसवीं शाख
हज़रत अनस रदियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि नबिय्ये करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया :
" तुम में कोई भी उस वक़्त (कामिल) मोमिन नहीं हो सकता जब तक वह अपने भाई के लिये भी वही पसंद न करे जो अपने लिये पसंद करता है " इमाम बुखारी व मुस्लिम ने इसे रिवायत किया है (सहीहुल बुखारी हदीस 13-सहीहुल मुस्लिम हदीस 45)
चौबिसवीं.पचीसवीं और छब्बीसवीं शाख
हज़रत अबू हुरैरा रदियल्लाहु अन्हु से रदियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि नबिय्ये करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया :
"जो अल्लाह तआला और रोज़े आखि़रत पर ईमान रखता है वह अपने पड़ोसी को तकलीफ न दे.और जो अल्लाह तआला और रोज़े आखि़रत पर ईमान रखता है वह अपने मेहमान की इज़्ज़त करे.और जो अल्लाह तआला और रोज़े आखि़रत पर ईमान पर ईमान रखता है वह अच्छी बात कहे या खामोश रहे :- ईमान बुखारी व मुस्लिम ने इसे रिवायत किया है (सहीहुल बुखारी हदीस 6018.सहीहुल मुस्लिम हदीस 47)
सत्ताईसवीं शाख: सलाम को फैलाना
हज़रत अबू सालेह हज़रत अबू हुरैरा रदियल्लाहु अन्हु से रिवायत करते हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया :
" उस ज़ात की क़सम जिस के क़बज़े में मेरी जान है तुम जन्नत में दाखिल न होगे हतता कि मोमिन बन जाओ और मोमिन न बनोगे हतता कि आपस में मुहब्बत करो-क्या मैं तुम्हें उस पर रहबरी न करूं कि जब तुम वह करलो तो आपस में मुहब्बत करने लगो.अपने दरमियान सलाम फैलाओ" इमाम मुस्लिम ने इसे रिवायत किया है (सही मुस्लिम हदीस 54 मुसन्निफ इब्ने अबी शैबा हदीस 25742)
अट्ठाइसवीं और उनतीसवीं शाख
हज़रत अबू हुरैरा रदियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि नबिय्ये करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया :
*जो ईमान और ईख्लास से रमज़ान के रोज़े रखे उस के गुज़िश्ता गुनाह बख्श दिये जाएंगे.और जो रमज़ान में ईमान व ईख्लास से शबे क़द्र में इबादत करे तो उस के गुज़िश्ता गुनाह बख्श दिये जायेंगे*इमाम बुखारी ने इसे रिवायत किया है (सहीहुल बुखारी हदीस 2014-सहीहुल मुस्लिम हदीस 670)
तीसवीं शाख
हज़रत अबू हुरैरा रदियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया :
"जो कोई मुसलमान के जनाज़े के साथ ईमान और ब निय्यत सवाब जाए और उस पर नमाज़ पढ़े फिर उसे क़ब्र में दफनाने तक इंतिज़ार करे.तो उस के लिये दो कीरात अज्र है.एक क़ीरात मिसले उहद है.और जो उस पर नमाज़ पढ़ कर (दफन से पहले ) लौट जाए उस के लिये एक क़ीरात अज्र है.इमाम बुखारी ने इसे रिवायत किया है (सहीहुल बुखारी हदीस 47सहीहुल मुस्लिम हदीस 945)
इकतीसवीं शाख
शअबुल ईमान में इकतीसवीं शाख का ज़िक्र नहीं है.मुमकिन है कि वह " जनाज़े पर नमाज़ पढ़ना हो " वल्लाहू अअलमु बिस्सवाब.(यह मुहक्किके किताब की राय है)
बत्तीसवीं शाख
:अल्लाह तआला की राह में निकलना
हज़रत अबू हुरैरा रदियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया :
"अल्लाह तआला उस का ज़ामिन हो चुका.जो उस की राह में निकला (फरमाता है) यह सिर्फ मुझ पर ईमान लाने और मेरे रसूल की तस्दीक़ करने के लिये घर से निकला है अल खैर
(मुकम्मल हदीस के अल्फ़ाज़ यह हैं: तो अल्लाह तआला उस के लिये इस बात का ज़ामिन है कि (अगर वह मर गया तो ) उसे जन्नत में दाखिल करेगा या अपने उस घर की तरफ जिस से वह निकला है. उस अज्र और गनीमत के साथ लौटाएगा जो उस ने हासिल किया है) इमाम बुखारी व मुस्लिम ने इसे रिवायत किया है (सहीहुल बुखारी हदीस 36-सहीहुल मुस्लिम हदीस 1876)
तैंतीसवीं शाख
हज़रत अबू हुरैरा रदियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि एक शख्स ने अर्ज़ की :
" ऐ अल्लाह के रसूल ! हम में से कोई अपने दिल में ऐसे ख्यालात महसूस करता है.जबान पर जिसे न लाना सारी ज़मीन की दौलत से बेहतर समझता है."यह तो सरा सर ईमान है " इमाम मुस्लिम ने इसे रिवायत किया है (सहीहुल मुस्लिम हदीस 132)
हज़रत इब्ने मसऊद रदियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि उस शख्स ने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में वसवसे की शिकायत की.हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया :यह खुला हुआ ईमान है (सहीहुल मुस्लिम हदीस 133)
चौतिसवीं शाख
हज़रत अबू अमामा रदियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया
"बे शक पुराने कपड़े पहनना ईमान से है (सुनन अबू दाऊद हदीस 4161- सुनन इब्ने माजा हदीस 4118)
पैंतीसवीं शाख
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया :
" जिसे उस की नेकी खुश करे और उस की बुराई ग़मगीन करे तो वह मोमिन है "(मुसतदरक अल हाकिम हदीस 35)
छत्तिसवीं शाख
हज़रत अनस रदियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया :
" मोमिनों में कामिल ईमान वाला वह है जिस के इखलाक़ अच्छे हों और बे शक हुस्ने इख्लाक़ रोज़े और नमाज़ के दर्जे पर है " (मसनद अबू यअला हदीस 4115)
सैंतीसवीं शाख
हज़रत अनस रदियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हमें वाज़ करते तो फरमाया करते :
"जो अमीन नहीं उस का ईमान नहीं.जो वअदे का पाबंद नहीं उस का दीन नहीं (मसनद इमाम अहमद बिन हम्बल हदीस 12383)
अड़तिसवीं शाख
हज़रत उमरू बिन शुएब अपने वालिद से वह अपने दादा से रिवायत करते हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया :
" मुझे सारी मख्लूक़ में प्यारी ईमान वाली वह क़ौम है जो मेरे बाद होगी वह सहीफे पायेंगे जिन में वह किताब होगी.वह किताब की हर चीज़ पर ईमान लायेंगे " (तफसीरे इब्ने कसीर 1.सफा 167)
यह हज़रत अबू हुरैरा रदियल्लाहु अन्हु से मरवी है
उन्तालिसवीं शाख
हज़रत उबैद बिन उमैर से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से पूछा गया :
"इस्लाम किया है ?" फरमाया "खाना खिलाना"पूछा गया: तो ईमान किया है ?ए अल्लाह के रसूल ! फरमाया:" सखावत और सब्र" ज़हरी ने अब्दुल्लाह बिन उबैद बिन उमैर से और उन्होंने अपने वालिद से इसे रिवायत किया किया है (तारीखुल कबीर लिल बुखारी हदीस 41.5.25.26)
चालीस्वीं शाख
हज़रत अबू हुरैरा रदियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया :
"अल्लाह की क़सम ! मोमिन नहीं होता ! अल्लाह की क़सम !मोमिन नहीं होता.अल्लाह की क़सम ! मोमिन नहीं होता ! सहाबा ने अर्ज़ की :कौन ? फरमाया :" वह जिस का पड़ोसी उस की शरारतों से अमन में न हो ! "इमाम बुखारी ने इसे रिवायत किया है (सहीहुल बुखारी हदीस 6061-सहीहुल मुस्लिम हदीस 46)
इकतालीसवीं शाख
इमाम बग़वी हज़रत अबू ऊमामा रदियल्लाहु अन्हु से रिवायत करते हैं कि नबिय्ये करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया :
" हया और खामोशी ईमान की दो शाखें हैं और फहश गोई और ज़्यादा बोलना निफाक़ की दो शाखें हैं"
(शरहूस्सून्नह हदीस 3384-मसनद इमाम अहमद हम्बल हदीस 22312-जामेअ तिरमिज़ी हदीस 2027)
बियालिसवीं शाख
i 2ईद रदियल्लाहु अन्हु से रिवायत करते हैं बिन कि . रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया :
"जब तुम किसी शख्स को मस्जिद आता जाता देखो तो उस के ईमान की गवाही दे दो.अल्लाह तआला का इरशाद है
إِنَّمَا يَعْمُرُ مَسَـٰجِدَ ٱللَّهِ مَنْ ءَامَنَ بِٱللَّهِ
وَٱلْيَوْمِ ٱلْـَٔاخِرِ
"" अल्लाह की मस्जिदें वही आबाद करते हैं जो अल्लाह और क़यामत पर ईमान लाते हैं (सूरए तौबा 09-18)
(मसनद इमाम अहमद बिन हम्बल हदीस 11651- जामेए तिरमिज़ी हदीस 2617)
तैंतालिसवीं शाख
हज़रत नोमान बिन बशीर रदियल्लाहु अन्हु से रिवायत करते हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया ;
"मोमिनीन की आपस में मुहब्बत और रहमत की मिसाल एक जिस्म की तरह है.जब एक अज्वो (अंग) बीमार हो जाए तो सारे जिस्म के आज़ा बे ख्वाबी और बुखार की तरफ एक दूसरे को बुलाते हैं .इमाम मुस्लीम ने इसे रिवायत किया है (सहीहूल मुस्लिम 2586-सहीहुल बुखारी 6011)
चव्वालिसवीं शाख
हज़रत अबू मूसा रदियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया :
" मोमिन.मोमिन के लिये बुनियाद की तरह हैं.वह एक दूसरे के साथ जुड़ कर मज़बूत होते हैं (सहीहुल बुखारी हदीस 481-सहीहुल मुस्लिम 2585)
पैंतालिसवीं शाख
हज़रत ज़ुबैर बिन.हज़रत अबू हुरैरा रदियल्लाहु अन्हु से रिवायत करते हैं कि नबिय्ये करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया
मोमिन उलफत करता है और उस में खैर नहीं जो न उलफत करे न उस से उलफ़त की जाए.(मसनद इमाम अहमद बिन हम्बल हदीस 9198-अल कामिललिइब्ने अदी 2-685)
छियालिसवीं शाख
हज़रत अबू हुरैरा रदियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि नबिय्ये करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया :
"बंदे के कामिल ईमान में से यह भी है कि वह अपनी हर बात में इस्तेस्ना करे "
(मुअजम औसत लिलतिबरानी हदीस 7752)
नोट:-यह हदीस साबित नहीं.कियोँकि उस की सनद दाऊद बिन मुहबिर अज़ मुआक बिन अबाद अज़ अब्दुल्लाह बिन सईद मक़बरी अज़ अबू हुरैरा है. और यह सनद बिल इत्तेफाक "मतरूह" है- (मुमकिन है उस से मुराद सबूते सिहत न हो.बल्कि ग़ैर सहीह .हसन लिज्जात या लिगैरिही हो या फिर ज़ईफ़ हो.कियोँकि मुसन्निफ का इसे किताब में ज़िक्र करना इस के सबूत की दलील है)
सैंतालीसवीं शाख
मुहम्मद बिन खालिद.हज़रत अब्दुल्लाह रदियल्लाहु अन्हु रिवायत करते हैं कि नबिय्ये करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया :
"सब्र.निस्फ ईमान है और यक़ीन पूरा ईमान है
(शअबुल ईमान लिल बेहक़ी हदीस 9265)
अड़तालीसवीं शाख
अबू क़लाबा जरमी एक मुसलमान से वह अपने से रावी की नबिय्ये करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया :" इस्लाम ले आओ सलामत रहोगे."अर्ज़ की:" ऐ अल्लाह के रसूल ! इस्लाम किया है ?फरमाया ."तू अल्लाह के सामने सरे तस्लीम खम कर ले और मुसलमान तेरी ज़बान और हाथ से महफूज़ रहें."अर्ज़ की ?कौन सा इस्लाम बेहतर है ? फरमाया "ईमान " अर्ज़ की : "ईमान क्या है ? फरमाया : यह कि तू अल्लाह पर.उस के फरिश्तों पर. उस की किताबों पर .उस के रसूलों पर और मरने के बाद दो बारा उठाए जाने पर ईमान लाए" अर्ज़ की :"कौन सा अमल बेहतर है ? फरमाया "हिजरत-अर्ज़ की.हिजरत किया है? फरमाया :" यह कि तू बुराई को छोड़ दे" रावी कहते हैं कि मैं ने अर्ज़ की :"कौन हिजरत बेहतर है ? फरमाया :"जिहाद .मैं ने अर्ज़ की :जिहाद किया है ? फरमाया :"यह की तुम जब कुफ्फार से मिलो तो उन से जिहाद करो.न खियानत करो और न बुज़दिल बनो " फिर तीन मरतबा यह फरमाया कि दो अमल ऐसे हैं जो सब आमाल से बेहतर और कामिल हैं हज्जे मबरूर या उमरा (मुसन्निफ अब्दुर्रज्जाक हदीस 20107/मसनद इमाम अहमद बिन हम्बल हदीस हदीस 17027)
उँचास्वीं शाख
इमाम बग़वी हज़रत अनस रदियल्लाहु अन्हु से रिवायत करते हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया :
"मोमिन की मिसाल बाली की तरह है कि वह कभी झुक जाती है और कभी सीधी रहती है (मसनद अबू यअला हदीस 3272-शरह उसूल एइतिकाद अहले सुन्नत वल जमाअत हदीस 1684)
पचासवीं शाख
हज़रत आदी बिन साबित.हज़रत ज़र बिन हबीश रदियल्लाहु अन्हु से रिवायत करते हैं.कि हज़रत अली रदियल्लाहु अन्हु ने फरमाया
" उस ज़ात की क़सम जिस ने दाने को चीरा और हर जान को पैदा किया ! बे शक नबी उम्मी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने यह अहद फरमाया कि तुझ से मुहब्बत न करेगा मगर मोमिन और बुग्ज न रखेगा मगर मुनाफिक."इमाम मुस्लिम ने इसे रिवायत किया है (सहीहुल मुस्लिम हदीस 78)
इक्कावनवीं शाख
नईम बिन हम्माद.हज़रत अबादह बिन सामित रदियल्लाहु अन्हु से रिवायत करते हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया :
"बे शक आदमी का बेहतर ईमान यह है कि उसे इल्म हो कि अल्लाह तआला उस के साथ है वह जहाँ कहीं हो (मुअजम औसत लिल तिबरानी हदीस 8791)
. बाँनवीं शाख
हज़रत अब्बास बिन मुत्तलिब रदियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि मैं ने अर्ज़ की
" ऐ अल्लाह के रसूल ! हम आप के कुछ सहाबा के चेहरों में कीना देखते हैं.उन वाक़िआत की वजह से जिन के सबब हम उन से कीना में मुब्तिला हुए.तो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया :उन्हों ने कर लिया ? अर्ज़ की :"हाँ? फरमाया " वह मोमिन नहीं होंगे या उन्हें ईमान की मुहब्बत नहीं मिलेगी जब तक वह तुम से अल्लाह तआला और उस के रसूल के लिये मुहब्बत न करें.किया वह मेरी शफ़ाअत की उम्मीद करते हैं और बनी अब्दुल मुत्तलिब उस की उम्मीद नहीं करते " (शरह उसूले एतिकाद अहले सुन्नत वल जमाअत हदीस 1687)
तिरपन से सत्तावन 53-से 57 तक की शाखें
अंसार की मुहब्बत.नेकी का हुक्म और बुराई से मना करना. मुसलमानों को सलाम करना जब तुम उन के पास जाओ. लोगों को सलाम करना जब उन के पास से गुजरो. यह पाँच शाखें हैं हैं जिन में से हरएक बारे में सहीह हदीस मरवी है
(अट्ठावन से साठ तक) तीन मज़ीद शाखें
हज़रत अनस बिन मालिक रदियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया :
"जिस में तीन खस्लतें हों वह ईमान की लज्जत पालेगा (01) उस के नज़दीक अल्लाह व रसूल तमाम मा सिवा से ज़ियादा पियारे हों (02) और यह कि वह जी शख्स से भी मुहब्बत करे सिर्फ अल्लाह तआला के लिये मुहब्बत करे (03) और यह कि उस के नज़दीक कुफ्र में लौटना ऐसा ना पसंदीदा हो जैसे आग में डाला जाना.ना पसंदीदा हो " इमाम बुखारी ने इसे रिवायत किया है (सहीहुल बुखारी हदीस 16-सहीहुल मुस्लिम हदीस 16 )
इकसठवीं शाख
हज़रत अनस रदियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि नबिय्ये करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया :
"तुम में कोई भी उस वक़्त तक (कामिल ) मोमिन नहीं हो सकता है जब तक वह लोगों के लिये भी वही पसंद न करे जो अपने लिये पसंद करता है और जब तक वह आदमी से सिर्फ अल्लाह के लिये मुहब्बत न करे " (मस नद इमाम अहमद हम्बल हदीस 13875)
बासठवीं शाख
हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रदियल्लाहु अन्हा से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया :
"सफाई निस्फ (आधा) ईमान है. इमाम मुस्लिम ने इसे रिवायत किया है (सहीहुल मुस्लिम हदीस 223)
तिरसठवीं शाख
हज़रत अनस रदियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया :
" बंदे का ईमान उस वक़्त तक कामिल नहीं होता जब तक उस के इखलाक़ अच्छे न हो जाएं और उस का गुस्सा कम न हो जाए "इमाम तिबरानी ने बरवायत अबू मौमूदूद अज़ अबू हाजिम अज़ अनस से रिवायत किया है (शरह उसूले एतिकाद अहले सुन्नत वल जमाअत हदीस 1692)
चौंसठवीं शाख
हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रदियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया :
" वह मोमिन जो लोगों में मिल जुल कर रहे और उन की तकलीफ पर सब्र करे.उस से अफ़ज़ल है.जो न उन में मिल जुल कर रहे और न उन की ईज़ा पर सब्र करे.
(शरह उसूले एतिकाद अहले सुन्नत वल जमाअत हदीस 1693) मसनद इमाम अहमद हम्बल हदीस 15022)(अल अदब अल मफ़रद लिल बुखारी हदीस 388) जामेअ तिरमिज़ी हदीस 2507) सुनन इब्ने माजा हदीस 4032)
शाख
हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रदियल्लाहु अन्हा ने फरमाया :
"बंदा या आदमी ईमान की हक़ीक़त को नहीं पहोंचता जब तक लोगों को उन के दीन में देख कर अहमकों की तरह न समझे " उस की असनाद हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रदियल्लाहु अन्हा से सहीह है (अल ज़हद लइब्ने मुबारक हदीस 296- अन अब्दुल्लाह बिन उमर रदियल्लाहु अनहुमा )
छियासठवीं शाख
हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद रदियल्लाहु अन्हु ने फरमाया :
"बे शक अल्लाह तआला ने तुम्हारे इख्लाक तक्सीम फरमादिये हैं. जैसा कि तुम्हारे दरमियान तुम्हारी रोज़ी बांट दी है. और अल्लाह तआला दुनिया तो उसे भी देता है जिस से मुहब्बत करता है और जिसे ना पसंद फरमाता है.मगर ईमान उस को देता है जिस से मुहब्बत करता है .तो जो कोई उस रात के क़याम से आजिज़ हो. उस माल के खर्च करने से आजिज़ हो. और दुश्मन का मुक़ाबला करने से कमज़ोर हो उसे " सुबहानल्लाह वलहमदुलिल्लाह " की कसरत करनी चाहिए कियोँकि यह अल्लाह तआला के नज़दीक सोने और चांदी के पहाड़ से बेहतर है (अल अदबुल मफ़रद लिल बुखारी हदीस 275)
चार दिगर शाखें (67-70 तक)
हज़रत अबू दरदा रदियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं :
"ईमान की चोटी चार चीजें हैं.फैसला करते वक़्त सब्र.तक़दीर पर रज़ामंदी. तवक्कल के लिये इख्लास. और परवरदिगार के हुजूर सुपुर्दगी (अल जुहद बिन मुबारक हदीस 123)शअबुल ईमान लिल बे हकी हदीस 198)हूलयतुल औलिया:1-216)शरह उसूल एतिकाद अहले सुन्नत वल जमाअत हदीस हदीस 1238)
इकहत्तरवीं और बहत्तरवीं शाख
इब्नेअबी हातिम.हज़रत अमार बिन यासिर रदियल्लाहु अन्हु से रिवायत करते हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया :
" जिस में तीन खस्लतें (आदत) हों वह ईमान की लज्जत पालेगा-तंग्दस्ती में खर्च करना.आलम में सलाम फैलाना.और खुद लोगों से इंसाफ करना."इमामूल काई ने कहा :यह मरफूअ नहीं (शरह उसूल एतिकाद अहले सुन्नत वल जमाअत 05:1004)
यानी :सहीह यह है कि हदीस मौकूफ है (मुसन्निफ अब्दुर्रज्जाक हदीस 19439)
.. तिहत्तरवीं शाख
अल्लाह तआला की राह में घोड़ा बांधना
हज़रत अबू हुरैरा रदियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि :
"जिस ने अल्लाह की राह में घोड़ा बांधा.अल्लाह तआला पर ईमान लाते हुए और उस के वअदों की तस्दीक करते हुए.तो उस का पेट भरना.उस की लीद और पेशाब.क़यामत के दिन उस शख्स की मीजान में नेकियां होगा " इमाम बुखारी ने इसे रिवायत किया है (सहीहुल बुखारी हदीस 2853)
बिहम्दिही तआला यह रिसाला अल्लाह तआला की मदद और उस की उमदा तौफीक से मुकम्मल हुआ -
अरबी से उर्दू
तर्जुमा व तखरीज का काम :- 26 मई 2013 -15 रजब 1434 हिजरी को मुकम्मल हुआ
उर्दू से हिंदी
06 सितंबर 2021 पीर (सोमवार) 26 मुहर्रमुल हराम 1443 हिजरी को मुकम्मल हुआ